“मेरा क्या कसूर”? का सूर बदलने में मिल गई पार्टी को सफलता
गोंदिया शहर में नगर परिषद चुनाव में लोगो की जबान पर जो वाक्य “मेरा क्या कसूर”.? के रुप में गूँज रहा था वह सवाल अब शांत हो चुका है । “मेरा क्या कसूर”.? पर जब विश्लेषण की बात सामने आई तो लोगों ने उस पर जो राय दी वह एकदम चौकाने वाली राय थी।.उस राय को लोगों ने चुनाव लड़ने वालों की मानसिकता का एक पहलू बताया पर वही राय अब बदल चुकी है।लोगों के बीच यह तर्क काम करने लगा है कि इसमें भाजपा के टिकीट देने वालों का क्या कसूर ? उन्होंने जो भी किया उसका दूसरा व सशक्त पहलू इस रुप में सामने आया कि 2024 के विधान सभा चुनाव के पूर्व हुए विधान सभा चुनाव में जब विनोद अग्रवाल को भाजपा ने टिकीट नहीं दी तो उन्होंने चाबी संगठन बनाकर चुनाव लड़ा और उस समय यही नारा बुंलद हुआ कि “मेरा क्या कसूर”? उससे उत्पन्न सहानुभूति का बहुत बड़ा असर सामने आया और विनोद अग्रवाल चुनाव जीत गए।
भाजपा के कर्मठ लोगों नेअपने नेता से नाराज होकर सवाल पूछा कि जिनको टिकीट नहीं दी गई, उनका क्या कसूर.? “मेरा क्या कसूर” का स्लोगन लटकाकर नाराज लोगों ने अपनी राय तो प्रगट कर दी पर जब उनके सामने यह तर्क सामने आया कि - जिस समय जब विनोद अग्रवाल को भाजपा ने टिकीट नहीं दिया तो उस समय जो गुट भाजपा के टिकीट देने वालों वरिष्ठो से लड़ा और कठीन समय पर विनोद अग्रवाल का साथ दिया . उनको चुनकर लाने में एड़ी -चोटी का जोर लगाया । वे लोग क्या उस चुनाव में टिकीट के सच्चे हकदार नहीं थे ? क्या विनोद अग्रवाल ने उनको भूल जाना चाहिेए ? क्या विनोद अग्रवाल ने इतना एहसान फरामोश हो जाना चाहिेए ?
उत्तर है नही।
फिर “मेरा क्या कसूर”? की बात तो अपने आप समाप्त हो जाती है।
यही वो तर्क है जो इस चुनाव में काम कर रहा है और जिसका असर नजर भी आने लगा है भाजपा की एकता के रुप में। इस तर्क को प्रभावशाली ढ़ग से पेश करने में जिसने भी भूमिका निभाई इसका असर भाजपा के वोटों को एकजूट करने की सफलता के रुप में सामने आ गया है.इसका सबसे बड़ा असर विरोधियों के वोटों पर पड़ने की संभावना नजर आ रही है।


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