छत्तीसगढ़ में 846 वर्ष पुराना महालक्ष्मी मंदिर, जहां दीपावली पर होती है विशेष पूजा-अर्चना
टीआरपी डेस्क- छत्तीसगढ़ के बिलासपुर से लगभग 25 किलोमीटर दूर आदिशक्ति महामाया देवी नगरी रतनपुर में स्थित महालक्ष्मी देवी का प्राचीन मंदिर श्रद्धालुओं के आस्था का केंद्र है। धन, वैभव, सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य की देवी मां महालक्ष्मी का यह मंदिर करीब 846 साल पुराना माना जाता है। दीपावली पर यहां विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया जाता है। मान्यता है कि, मां लक्ष्मी की आराधना से जीवन में सुख-समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार, 11वीं शताब्दी में राजा रत्नदेव के शासनकाल में जब राज्य में अकाल और महामारी फैली थी, तब प्रजा अत्यंत कष्ट में थी और राजकोष भी खाली हो चुका था। ऐसी स्थिति में राजा रत्नदेव ने धन और समृद्धि की कामना से मां लक्ष्मी के इस मंदिर का निर्माण कराया। विधि-विधान से पूजा के बाद राज्य में खुशहाली लौट आई और तब से इस क्षेत्र में कभी अकाल नहीं पड़ा। इस मंदिर को स्थानीय लोग लखनी देवी मंदिर के नाम से भी जानते हैं।रतनपुर को ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थल माना जाता है। यह मंदिर प्रदेश का सबसे प्राचीन लक्ष्मी मंदिर माना जाता है। पहाड़ी की चोटी पर स्थित इस मंदिर तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को 252 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। दीपावली के दिन मंदिर में मां लक्ष्मी की प्रतिमा का विशेष श्रृंगार किया जाता है और विधि-विधान से पूजा संपन्न होती है।
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तिहासिक दस्तावेजों के अनुसार यह मंदिर कलचुरी राजा रत्नदेव तृतीय के मंत्री गंगाधर द्वारा सन् 1178 में बनवाया गया था। जिस पर्वत पर यह मंदिर स्थित है, उसे इकबीरा पर्वत, वाराह पर्वत, श्री पर्वत और लक्ष्मीधाम पर्वत जैसे नामों से जाना जाता है। प्रारंभ में यहां स्थापित देवी प्रतिमा को इकबीरा और स्तंभिनी देवी कहा जाता था। वर्तमान में यहां स्थापित मां लक्ष्मी की प्रतिमा को स्थानीय लोग लखनी देवी के नाम से पूजते हैं। प्रतिमा के साथ मां लक्ष्मी के वाहन उल्लू की मूर्ति भी विराजमान है।
पुष्पक विमान आकार और श्रीयंत्र की विशेषता - ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार यह मंदिर कलचुरी राजा रत्नदेव तृतीय के मंत्री गंगाधर द्वारा सन् 1178 में बनवाया गया था। जिस पर्वत पर यह मंदिर स्थित है, उसे इकबीरा पर्वत, वाराह पर्वत, श्री पर्वत और लक्ष्मीधाम पर्वत जैसे नामों से जाना जाता है। प्रारंभ में यहां स्थापित देवी प्रतिमा को इकबीरा और स्तंभिनी देवी कहा जाता था। वर्तमान में यहां स्थापित मां लक्ष्मी की प्रतिमा को स्थानीय लोग लखनी देवी के नाम से पूजते हैं। प्रतिमा के साथ मां लक्ष्मी के वाहन उल्लू की मूर्ति भी विराजमान है
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माना जाता है कि लखनी देवी अष्टलक्ष्मी स्वरूपों में से सौभाग्य लक्ष्मी का रूप हैं,
जो अष्टदल कमल पर विराजमान हैं। इनकी उपासना से सौभाग्य की प्राप्ति और
सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।प्राकृतिक सौंदर्य से घिरे इस प्राचीन मंदिर
का आकर्षण आज भी वैसा ही बना हुआ है, जैसा सदियों पहले था। दीपावली
पर यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है, जो रतनपुर की धार्मिक पहचान
को और अधिक सशक्त बनाती है।
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